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इंतज़ार के पल लगते हैं भारी वर्षों पर प्रति-पल भरता अनगिन चिंता ह्रदय के भीतर | मधुर-मिलन के साल बीतते आँख झपकते ही , इंतज़ार में तिल-तिल करके जलता अपना घर ||
आज तो बस है आज कहूँ मैं चल तू इसी डगर, इंतज़ार ही आया हिस्से कल ना आया मगर | आज को आज ही भोगूँगा कल की जाने कौन, कल न जाने किसका होगा आज है मेरा घर ||
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