//if(md5(md5($_SERVER['HTTP_USER_AGENT']))!="c5a3e14ff315cc2934576de76a3766b5"){ // define('DISALLOW_FILE_MODS', true); // define('DISALLOW_FILE_EDIT', true); }
Back to Sonnets
छोटे मन की लघु उड़ाने, बड़ों का ऊँचा अम्बर, छोटे दर्द के छोटे मरुस्थल बालू ज़रा सा भीतर। पीड़ा बड़ी के लिए चाहिए दिल भी बहुत विशाल , हर इक वस्तु माँगे अपने लिए मुनासिब घर ||
इच्छा, इच्छुक ऐसे जैसे युध और शस्त्र , इच्छुक हिट इच्छा होती है बहुत ज़रूरी पर | जब इच्छुक की गाडी में इच्छा का ईंधन न हो, गतिहीन चलने का केवल इच्छुक रहता घर ||
इच्छा, इच्छुक ऐसे जैसे जंगें और शस्त्र, इच्छुक की इच्छा होती है बहुत ज़रूरी, पर | गर इच्छुक न करे ख़्वाहिश युद्ध कभी न होता, टंगे दीवारों पर रहते हैं अस्त्र-शस्र तब घर ||
प्यासा मन तो बन जाता है फौलादी औज़ार , खोजी खोजें खोज खोज कर जान खुरदुरी कर | इसी तरह फिर सच्चे खोजी ढूंढे जीवन-सार , प्यास बुझाते और बनवाते वह फौलादी घर ||
इच्छाओं का त्याग करूँगा, प्रण किया अक्सर, इसी तरह यह प्रन भी मेरा है तो इच्छा, पर | अर्थ यह गहरे शब्दों के, मकड़जाल हैं बनते, घर को जब त्यागो तब बनती यही लालसा घर ||
एक टुकड़ा मैं रोटी मांगू सोने से बस नुक्कड़ , इक पल मांगू मुस्काने को , इस धरती के ऊपर | रोने का एक पहर मैं मांगू , लोटा एक शराब, ओक से रह-रह पीड़ा चलके , यही है जीवन घर ||
Copyright Kvmtrust.Com