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कहे कहावत मात-पिता की करनी भुगतेय पुत्तर , लेकिन ऐसी चिंताओं से उठ जा तू ऊपर | बुरा किया जो पुरखों ने, तू भोग ले उसका अपयश, पर अच्छाई उनकी लेकर सजा ले पाना घर ||
यहाँ बिकाऊ हर वस्तु है गिरजे और मंदिर, बेचने आया मैं भी अपना रोटी खातिर घर | पर यह मेरी पत न माने करती मिन्नतें-शिकवे, रोटी और कपड़े की खातिर भाई बेच न घर ||
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