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भाव अभी न देहके पूरे मन न हो कातर, तपन और भड़केगी पीड़ा डालेगी लंगर | पीड़ा सही नहीं जाती तो कह दो मन की बात, मैं भेजूँ अनमोल उमीदें किसी और के घर ||
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