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सारवान ने बाँध सभी कुछ ठूस लिए ‘त्रंगड़’, मुट्ठी भर न भूसा छोड़ा ऊँट के लिए मगर | हर पल इसी कहानी को दुहराते आए लोग , हलवाहे की मेहनत जाती साहूकार के घर ||
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