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सुन विलाप हीर का हरगिज़ ठट्ठा-हँसी न कर, बारिसशाह का किस्सा सुनकर सिसकी आहें भर | इक -दूजे को तरसें रहें, दुनिया करे अलग, शोक भरे दुखांत यह किस्से,शोकाकुल है घर ||
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