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शिकार यार बनाया झेले ज़हरीले खंजर , दिल का मॉस खिलाया उसके टुकड़े टुकड़े कर| पर उसने ये चुग्गा चुग कर ऐसी भरी उड़ान, खेत पराये जाकर बैठा, बैठा दूजे घर ||
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