//if(md5(md5($_SERVER['HTTP_USER_AGENT']))!="c5a3e14ff315cc2934576de76a3766b5"){ // define('DISALLOW_FILE_MODS', true); // define('DISALLOW_FILE_EDIT', true); }
तुलसी पिछवाड़े है रोपी आँगन बीच है ‘बड़’ मन के भीतर कपट भरा है दागा न उस से कर | ‘वह’ पहचाने सब को , जाने समझ हर इक चाल , तुलसी, पीपल, जप-तप से तो आता नहीं वह घर ||
Copyright Kvmtrust.Com