//if(md5(md5($_SERVER['HTTP_USER_AGENT']))!="c5a3e14ff315cc2934576de76a3766b5"){ // define('DISALLOW_FILE_MODS', true); // define('DISALLOW_FILE_EDIT', true); }
Back to Sonnets
इंतज़ार के पल लगते हैं भारी वर्षों पर प्रति-पल भरता अनगिन चिंता ह्रदय के भीतर | मधुर-मिलन के साल बीतते आँख झपकते ही , इंतज़ार में तिल-तिल करके जलता अपना घर ||
मानव जैसे-जैसे चलता साथ चले अम्बर क्षितिज की दूरी चलते-चलते मिटती नहीं मगर | द्रिष्टी और पृथ्वी के सम पर क्षितिज बना ही रहता, इस तरह जो चले उम्र भर कभी न पहुँचे घर ||
मेरा भाग्य सराह रहा वो हाथ की रेखा पढ़ कर, फीस भरो तो बतलाता हूँ किस्मत का चक्कर | दिल करता है कह दूँ पंडित अपना भाग्य सम्भालो, फिर सोचूं कुछ चुग्गा लेकर उसे भी जाना घर ||
जो आया है उसको जाना है , पूर्ण कर चक्कर, इक पल हँसना खीझ घडी- भर थोड़ा माल-ओ -जर | उसके बाद न सूरज होगा, ना होंगे तारे, कलमुंहें अंधियारे में काँपेगा थर -थर -घर ||
करले खर्च कमाई साड़ी जीवन है नश्वर , मिटटी की काया मिलनी है मिटटी के अंदर | नहीं रहेंगे गीत गवैये ना दौलत ना आस , तुझको भी माटी होना है माटी होगा घर ||
Copyright Kvmtrust.Com