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रस चूसे कलियों-फूलों का यह सारा दिन-भर, रात को लेखा-जोखा करती बैठ समेटे पर। मधुमक्खी का काम है मीठा शहद कली का लेकर , उससे भरते रहना अपने छत्ते का घर-घर ||
गांधी बना न जाए यारो,पहन के तन पे खद्दर, गांधी टोपी पहन के या फिर लम्बे देकर लेक्चर | कर्मों का योगी था गांधी, सत्य था उसका बल, राज दिलों पे करता था पर स्वयं था वह बेघर ||
छलिया क्षितिज उम्मीद जगा कर डाले सौ चक्कर , छल मरीचिका और बनाती पीड़ा को दुःख कर | जलते-तपते मरुस्थलों मेँ इंसा चलता जाता , उफ़क की दूरी काम न होती आस न आती घर ||
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