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सभी पैंतरे ठीक पड़े जब होता है बेहतर, हद पहचाने इन्सां, खेले सीमा के भीतर। इस से पहले किस्मत उसकी बदले अपनी चाल , यारों की टोली से बोले – मैं चलता हूँ घर ||
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