‘बस इतना ही?’ मुझे चिढ़ाए तू यह कह-कह कर, जितनी पीड़ा भोगी मेरी उतनी सख्त पकड़ | ढीली लगे तो सारे जग का दर्द संभाल के रखना और उषे ले रूह मेरी तू, आना नेरे घर ||
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