माथे की तू पोंछ ले तू भृकुटि, चेहरे जऐ संवर, क्रुद्ध रूप यह देख तुम्हारा, सेहमा सारा घर। नहीं भूलना सीखे यह मेरी ‘खींचे रखना डोर’, प्यार और अनुशासन ही मिल कर सुखी बनाते घर ||
Copyright Kvmtrust.Com