बाहर हँसती भीतर-भीतर चुभते हैं खंजर, पुच-पुच करती चुम्मा देकर ख़ुश करती है पर। जीवन के संघर्ष और तिस पर घुन-खाया उद्यम, बात समझ न आए तो फिर ढहता जीवन-घर ||
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