मुल्ला दे जो बांग तो उसकी बांग अनसुनी ना कर, पंडित पूजा करे तो सुन ले उसका भी मंतर। राम-रहीम तो हैं इन छोटी सीमाओं से दूर, यह सारा ब्रह्माण्ड उसी ‘बेघर’ का अपना घर ||
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