//if(md5(md5($_SERVER['HTTP_USER_AGENT']))!="c5a3e14ff315cc2934576de76a3766b5"){ // define('DISALLOW_FILE_MODS', true); // define('DISALLOW_FILE_EDIT', true); }
Back to Sonnets
मुझे न भाएँ पौंड और रूबल खीचें न डॉलर , नहीं दासता करूँ किसी की मानूं न आर्डर। मैं डुग्गर का वासी सह सकता हूँ भूख व प्यास, देश बेच कर कभी बनाऊंगा न अपना घर ||
जम्मू में है ग’रने-वसाका थूहर और कीकर, साँप, ‘गनाह’ बिच्छू ज़हरीले और विषैल विषधर। लेकिन यहाँ की बोली मीठी जाने सब यह बात , जिस के कारण गूँज रहा है डुग्गर का घर-घर ||
‘कुंजों’ की निंदा होती है-देश है यह डुग्गर, छोटे पंखिन से सीमित है इनका सदा सफर | अन्य कोई भाषा न करती कुंजों का तिरिस्कार , इसी लिए की इन कुंजों के बहुत दूर है घर ||
बदल भैया बरसोगे जब डुग्गर देश में जाकर, मिलना उससे जिसका नाम है केहरि सिंह ‘मधुकर’ | मेरी वाह-वाह देकर उसको ‘डोली’ कविता पर, उसका उत्तर बिना सुने ही लौट आना तुम घर ||
Copyright Kvmtrust.Com