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बदल भैया बरसोगे जब डुग्गर देश में जाकर, मिलना उससे जिसका नाम है केहरि सिंह ‘मधुकर’ | मेरी वाह-वाह देकर उसको ‘डोली’ कविता पर, उसका उत्तर बिना सुने ही लौट आना तुम घर ||
बादल तुमसे अर्ज़ है इतनी बरसो तुम खुल कर, बाहर साजन जा न पाएं छोड़ के मुझ को घर | पर जो उसे लौटना घर हो रुक जाना पल भर, अटक न जाये कहीं, राह में, पहुँचे सीधे घर ||
मेरी जान ! बरसना है तो बरसो बन बौछार, झिजक, क्लेश मिटा दे सारे तू निर्भय होकर | घोल दे हर शंका, बह जाने दे हर संशय को, चलो डुबो दें कसक भरे, गहरे गहवर में घर ||
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