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कुड़ी एक गावँ बगूने की रूपवती चंचल, उसके रूप-अनूप पे जाकर अटकी मेरी नज़र | देख के उसके दिल खिल उठता रखूँ उसको पास, जब तक जीवन तब तक होगी प्रीत हमारा घर ||
जैसे झरने ढूंढे नदियां ,नदियां दूँढे सर, जैसे हवा आसमानों में खोजे निज दिलबर | कोई यहाँ नहीं एकाकी सभी हैं जोड़ीदार, प्रीत में फिर क्यों मिल न पाते तेरे मेरे घर ||
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