मैं पागल था दुनिया ने भी समझा , की न खातिर , मैंने भी सम्मान दिया न, किया न उसका आदर | देता क्या आदर उसको जो समझे मुझे अकिंचन, उसकी खातिर क्यों उजाड़ू मेँ अपना ही घर ||
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