प्रेम की किसने थाह है पाई प्रीत गहन-सागर, नफ़रत की पैमाईश भी न आसां होती पर। इतना भेद तो इनका समझ में सबके आता है, नफ़रत घर को तोड़े लेकिन प्रीत बनाती घर ||
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