तुलसी पिछवाड़े है रोपी आँगन बीच है ‘बड़’ मन के भीतर कपट भरा है दागा न उस से कर | ‘वह’ पहचाने सब को , जाने समझ हर इक चाल , तुलसी, पीपल, जप-तप से तो आता नहीं वह घर ||
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