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किसी ने पूछा कितना अनुभव कितनी तेरी उम्र , अभी किया न लेखा-जोखा हुई बहुत गड़बड़ | मानव उमरे ही गिनता है उस पल जब के फिर , कुछ न गिनने को बचता है बैठ अकेले घर ||
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