प्रीत मचा देती है कैसी आंधी और झक्कड़, मैं न समझूँ प्यार- व्यार को मै नादां अनगढ़ | मुझे बता दो लिख कर, क़ैसे लिखते हैं चिट्ठी, ख़ुद डाकिया बन कर दूँगा चिट्ठी तेरे घर ||
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