एक दफा मैं निपट अकेला गया था सन्नासर , चुम्बक जैसे कोई खींच लोहे को ऊपर | सर इसका सूखा है लेकिन सुन्दर सहज नज़ारा, अगर कहीं तौफीक हुई तो यहाँ बनाऊंगा घर ||
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