शालीमार और चश्माशाही झरनों की झर-झर , पहली बार जो होंठ थे चूमे तेरे श्रीनगर | डल के भीतर एक शिकारी , बैठे मैं और तू , क्या कर बैठे,हमने चाहे कैसे-कैसे घर ||
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