तू मस्तानी, है मन-भानी रूप का तू सागर, ओक लगा के मांग रहा हूँ उंढेल दे तू गागर | मुझे रूप की तृषा, प्रेम-जल का हूँ मैं तो प्यासा, छलक रहा है रूप-तरंगित तेरा प्रेमिल घर ||
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