वह क्या प्रीत-डगर का राही जिसके मन में डर, उससे प्रीत निभेगी कैसे सख्त न जिगर। दिल-ओ-जान की राह के कांटे चुनने पड़ते खुद, चुभन से डरते रहने पर कंटीला बनता घर ||
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