आस-निराश न समझे मेरा मनवा लाल-बुझक्कड़, इस देती है मीठा चुम्बन दूजी जड़ती थप्पड़| इक झगड़ालू लड़ती, दूजी आलिंगन में बांधे , दोनों के जब तार जुड़े तब संभला रहता घर ||
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