जब रूठे तू और फेर ले अपनी तीर-नज़र , सौ-सौ बिजली तड़तड़ करती गिरती है दिल पर। सीने में छाए बेचैनी जीवन मुझे चिढ़ाए , यूँ लगता है संशय में आंहें भरता यह घर ||
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