कविता को अब कहाँ मिलेंगे ऐसे बहते सरोवर, कालिदास और षैली ग़ालिब कविता स्रोत अमर। एक वियोगी नामक नादां, नए सुरों में खोया, बहने की तरकीबें सोचे बैठे-ठाले घर।।
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