मानव जैसे-जैसे चलता साथ चले अम्बर क्षितिज की दूरी चलते-चलते मिटती नहीं मगर | द्रिष्टी और पृथ्वी के सम पर क्षितिज बना ही रहता, इस तरह जो चले उम्र भर कभी न पहुँचे घर ||
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