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आस सुरो की मारक-धाकड़ घेरे है मिल कर , पकड़ दुनाली चले शिकारी जब बोले तीतर | मौत के डर से कैसे कोई अपनी उमंगें छोड़े , ताल-सुरो का गाला जो घोंटे , पिंजरा बनता घर ||
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