दिलो के बीच बिछोड़ा फैला , हो गये घर बंजर, खेल-तमाशे चुभते मन में बन ज़हरीले नश्तर| हंसी-ठहाके , पेंग -हिलोरे सब कुछ लगता फीका , जिस घर साजन तनहा छोड़े, दुःख का है वो घर ||
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