‘प्यार कृपण न, क्यों लगाए तू िक्कड़-दुक्कड़, अपरिमित है दौलत इसकी , क्या करना गिन कर | दिल इसका है शेरों जैसा , जान लुटा देता है , बाँहों मेँ अम्बर भरता है तभी तो इसका घर ||
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