काम-रुपयों की सांगत मेँ , हुआ है डर-बेदर, मेरे लिए खुला डर किसका, कौन-सा मेरा गढ़ | किस के केश ढकेंगे मेरा नंग-मनंगा तन , किसके होंठ रंगेंगे मेरा यह मैला-सा घर ||
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