Back to Ghar verse
भाव अभी न देहके पूरे मन न हो कातर, तपन और भड़केगी पीड़ा डालेगी लंगर | पीड़ा सही नहीं जाती तो कह दो मन की बात, मैं भेजूँ अनमोल उमीदें किसी और के घर ||
शौक अनोखा पाला है गर मन मंदिर के अंदर, साध बना लो उसको अपनी सब साधों से ऊपर | भूख और लोभ को दिल से त्यागो, उसकी राह ना छोड़ो, मिट जाये हस्ती तेरी या उजड़े तेरा घर ||
घर की शोभा बने गृहस्ती और उसके अंदर आशाओं के बीजों से ही फूटे प्रेमांकुर | यह है क्यारी तू माली है सींच गुढ़ाई कर, मधुर सुवासित गुलदस्तों से सजेगा तेरा घर ||
प्यासा मन तो बन जाता है फौलादी औज़ार , खोजी खोजें खोज खोज कर जान खुरदुरी कर | इसी तरह फिर सच्चे खोजी ढूंढे जीवन-सार , प्यास बुझाते और बनवाते वह फौलादी घर ||
मानव के कर्मो का लेख होता है आखिर, स्वर्ग के मुंशी तब कहते है प्राणी देर न कर| जितनी देर करो वो उतनी ‘सुरगी घटाते , सो बेहतर है रोज़ बैठकर लेखा करले घर ||
इच्छाओं का त्याग करूँगा, प्रण किया अक्सर, इसी तरह यह प्रन भी मेरा है तो इच्छा, पर | अर्थ यह गहरे शब्दों के, मकड़जाल हैं बनते, घर को जब त्यागो तब बनती यही लालसा घर ||
हो अगर ना दिल मानव का निर्भय और निडर , तो मानवता खतरे में है मुझको लगता डर | किस खातिर यह घर-चौबारे, लुटे जो अपनी लाज, तोड़ो ऐसे महल-मीनारे , फूंको ऐसे घर ||
छड़ी बलूत की हाथ में मास्टर जी आते लेकर, हमने सबक न याद किया है हम तो है निडर | घर पहुंचो तो याद न रहते मास्टर और स्कूल, नयी ही दुनिया हो जाती है अपना कच्चा घर ||
किसी ने पूछा कितना अनुभव कितनी तेरी उम्र , अभी किया न लेखा-जोखा हुई बहुत गड़बड़ | मानव उमरे ही गिनता है उस पल जब के फिर , कुछ न गिनने को बचता है बैठ अकेले घर ||
एक ओर महापुरुष विराजे दुनिया के अंदर, ओर दूसरी तरफ जुगाली करते बैठे जिनावर | यह मानुष रस्सी का सेतु इस खाई के ऊपर , पल भर न निश्चित हो पाए कहाँ है उसका घर ||
मै पागल था दुनिया ने भी समझा , की न खातिर, मैंने भी सम्मान दिया न , किया न उसका आदर | देता क्या आदर उसको जो समझे मुझे अकिंचन, उसकी खातिर क्यों उजाडूँ मै अपना ही घर ||
खाली रूह है तेरी टेड़े जीने के औज़ार , सुन्दर-सा लिबास पहन ले रंग ले तू वस्त्र | आँखों को चुंधियाने वाली लौ ज़रा-सी ले ले , दे अपने अंधियारे तन को जिल जिल करता घर ||
करले खर्च कमाई साड़ी जीवन है नश्वर , मिटटी की काया मिलनी है मिटटी के अंदर | नहीं रहेंगे गीत गवैये ना दौलत ना आस , तुझको भी माटी होना है माटी होगा घर ||
एक टुकड़ा मैं रोटी मांगू सोने से बस नुक्कड़ , इक पल मांगू मुस्काने को , इस धरती के ऊपर | रोने का एक पहर मैं मांगू , लोटा एक शराब, ओक से रह-रह पीड़ा चलके , यही है जीवन घर ||
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